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आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
हूँढ़िया उत्सूत्र प्ररूपना करते हैं, मैं स्पष्ट सूत्रों की सच्चा बातें निर्भय होकर कहता हूँ। ___ और भी मेरा आचार-व्यवहार हूँ ढ़ियों से कम नहीं किन्तु बढ़कर है । इत्यादि बातें होने से गणेशमलजी व राजकुंवर के दिल में जो शल्य था वह निकल गया, और निश्चय हो गया कि जिन लोगों ने गलतफहमी फैलाई है उसका कारण केवल द्वेष भाव ही है।
इतने में व्याख्यान का समय हो गया, कमरा श्रोताओं से भर गया; बहुत सी साध्वियें भी आ गई । जब लोगों को खबर हुई कि गणेशमलजी, महाराज के संसारी भाई और गजकुंवर संसारी धर्मपत्नी हैं, तो लोगों ने उनको धन्यवाद देना शुरू किया, कि धन्य है मुनिश्री के माता पिताओं को कि. जिन्होंने ऐसे लोको. त्तर नररत्न को जन्म देकर जैनधर्म पर महान् उपकार किया है, धन्य है आपके खानदान एवं कुलवंश को और विशेष धन्यवाद है इन राजकुंवर बाई को कि आपने अपनी जवानी में ऐसे पति देव को चारित्र्य के लिये आज्ञा देकर आप अपने जीवन को सफल बनाया है धन्य है आपके इन लघु बंधुओं को इत्यादि । - बाद, दोपहर में सूत्र की बांचना शुरू हुई जो कि लोग बड़े ही आनन्द के साथ सुनने लगे; गणेशमलजी तथा राजकुंवर भी सुनने को बैठ गये। आपकी विद्वता और सूत्र बांचना तथा समझाने की शैली पर सब लोग मुग्ध बन गये।
व्याख्यान समाप्त होने के पश्चात् गणेशमलजी, एवं राजकुँवर वगैरह जोगराजजी वैद्य के वहां जाने लगे तो रास्ते में प्यारचन्दजी स्वामी का मकान पाया, गणेशमलजी ने अन्दर जाकर वन्दन