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आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
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श्राते हैं, शेष रहा समाज के लिये इसमें आपका ही भला है, हमें तो केवल दलाली ही मिलती है.
श्रीसंघ - हाँ, आप का कहना सत्य है, श्राप श्री जी जो कुच्छ फरसा वह हम करने को तैयार हैं, किन्तु आपको चतुर्मास की विनती तो स्वीकार करनी ही पड़ेगी ?
मुनि० - हम दो बातें करवाना चाहते हैं, ( १ ) जैन पाठशाला, (२) जैन लाइब्रेरी ।
श्रीसंघ — दोनों कार्य हो जायंगे ।
मुनि० - जब आप दोनों शुभ कार्य कर देंगे तो हम चतुसभी पके वहीँ करने की स्वीकृति दे देंगे ।
श्रीसंघ - ठीक है, हम विचार कर कल जवाब देंगे ।
मुनि:- इसमें विचार क्या करना है, यदि सच्चे दिल की लग्न है तो एक व्यक्ति भी पाठशाला के कार्य को कर सकता है, तथा नव-युवक मंडल लायब्रेरी का कार्य उठा सकते हैं ।
श्रीसंघ — मोतीलालजी कौचर ने विनय की कि आपका वचन कभी खाली ज ने का नहीं है, क्योंकि आपका प्रभाव ऐसा ही है । बाद मोतीलालजी कौचर ने अपने भतीजे माणकलालजी को एकाँत में ले जा कर कहा कि ऐसा सुश्रवसर क्यों जाने देते हो, यह कार्य तो अभी हो जायगा, इस लिये यदि तुम अकेले नहीं करो तो आधा भाग मेरा रहने दो, इत्यादि । इस पर मारकलालजी कोचर ने मुनिश्री के सामने आकर कहा कि श्रीसंघ मुझे आज्ञा दे तो मैं मेरी ओर से पाठशाला की सब योजना करने का तैयार हूँ | बस लोगों का उत्साह खूब बढ़ गया, और इसी उत्साह में गुलाबचंदजी गोलेछा बोल उठा कि यदि माणकलालजी