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चतुर्मास की साप्रा बिनती गया, इस हालत में यह चंदा कैसे चढ़ावें ? खैर, खरतरों के देखते ही देखते बात ही बात में १५००) चंदा हो गया । बस फिर तो था हा क्या संस्था की ओफिस के लिये जैन पाठशाला का मकान मुकर्रर करके कार्य को भी प्रारम्भ कर दिया-फलस्वरूप में आज पर्यन्त उस संस्था के छोटे बड़े २०१ पँथों की करीब ४००००० पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं और जिससे भारत के चारों ओर ज्ञान का खूब प्रचार हुआ और हो रहा है शायद ही ऐसी कोई भी लायब्रेरी बची हो कि जिसमें इस संस्था की किताब वहाँ न हो। अभीभी संस्था का प्रकाशन कार्य खूब ही रफ्तार से चल रहा है यहसब हमारे चरित्रनायकजी कीअनुग्रह कृपा का ही मधुर एवं सुंदर फल है। ५६ वि० सं० १६७३ का चतुर्मास फलौदी में ___ फलौदी श्रीसंघ ने (तीनों गच्छवाले) मुनिश्री को.चतुर्मास के लिये बहुत आग्रहपूर्वक विनती की, उत्तर में आपने कह दिया कि यहाँ चतुर्मास करने से हमको क्या लाभ होगा ? - श्रीसंघ: क्या आपको लाभ कम हो रहा है ? हमने हमारी उम्र में व्याख्यान, प्रतिक्रमणादि में इतने लोगों की उपस्थिति कभी नहीं देखी है, जितनी की अब आपके समय में देखते हैं, तथा श्रापकं चतुर्मास बिराजने में तो और भी बहुत लाभ होगा। इसके अतिरिक्त श्राप जो आज्ञा दें वह शिरोधार्य करने को श्रीसंघ तैयार है। ___ मुनि०-हमको हमारे निज के लिये तो कुछ भी नहीं कहना है, क्योंकि हम गोचरी शहर से और कपड़ा बाजार से
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