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भादर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
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बीकानेर भेजा, और वे वहाँ जाकर सब हाल कह कर फलौदी पधारने की प्रार्थना की, किंतु आनन्दसागरजी ने कह दिया कि इस समय गर्मी बहुत ज्यादा बढ़ गई है मैं नहीं आ सकता हूँ, यदि मुनिजी यहाँ आ जावें तो आप भेज दिरावें । पाबुदानजी ने कहा कि हम लोगों ने बड़ो कोशिश करके तो उनका दिल कर. माया है इस पर भी आप गर्मी का बहाना करके फलौदी पधारने से इन्कार करते हो, यह ठीक नहीं है किन्तु आपको जरूर पधारना चाहिये । इस पर भी आनन्दसागरजी ने ध्यान नहीं दिया और कह दिया कि चतुर्मासा के पश्चात् मैं अवश्य मिल लूंगा । इस पर पाबूदानजी निराश होकर वापिस फलौदी श्राये और सबको वहाँ का हाल सुना दिया इस पर साध्वी वगैरह सब हताश हो गये। ५५ स्था०साधु रूपचंदजा की दीक्षा
हरसाला में पूज्य श्रीलालजी की समुदाय । के रूपचंदजी नामक साधु थे, आप का एक पत्र मुनिश्री के पास आया, जिस में लिखा था कि मैं इढ़ियापना का त्याग कर आप की सेवा में रहना चाहता हूँ, अतः आप श्रावकों को सूचित कर मार्ग के लिए एक आदमी का इंतजाम करदें ताकि मैं आपकी सेवा में शीघ्र ही उपस्थित हो जाऊं। साधु रूपचंदजी पहिले ही से आप के पास रहे हुए थे, आप उन की प्रकृति से ठोक जानकार भी थे, फिर भी एक भव्यात्मा के उद्धार की भावना से आपने सब प्रबन्ध करवा कर लिख दिया कि आप अपनी पूर्व प्रकृति को बदल दी हो तो खुशी से मेरे पास आ सकते हैं। बस फिर तो देरही क्या थी।