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भादर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
३५८ से ४ क.स का फासला पर है । फलौदी और चीला के बीच में श्रावक श्राविकाओं का खासा तांता लग गया । शेष रहे हुए रेलगाड़ी से आ गये, लगभग ५०० श्रावक श्राविकाएं चीले में जैनधर्म की जय नाद कर रहे थे, इधर ५० श्रावक लोहावट से भी मुनि श्री को पहुँचाने को आ गये थे, फलौदी वालों की ओर से स्वामिवात्सल्य हुआ और दिन भर खूब चहल पहल रही। - सुबह की गाड़ी में कई लोग तो फलौदी चले गये, क्योंकि उनको आगे जाकर अगवानी को सुन्दर तेयारी करनी थी। - चैत्रकृष्णा ३ को प्रातःसमय हो मुनिश्री ने फलौदी की ओर विहार करदिया । फलौदी की जैनसमाज में उस दिन अजब उत्साह छाया हुआ था । कई लोग तो प्रातः जल्दी ही उठ कर चीले के मार्ग मुनिश्री के सन्मुख चले गये,कई लोग लवाजमे की तैयारियाँ कर रहे थे कई लोग बाजे गाजे, नक्कार निशान, कोतल आदि की अगवानी के लिये तैयारियाँ कर रहे थे; जगह जगह पोलें बनाई गई थीं, स्थान २ पर ध्वजा, बावटे, फरिये, शुभागमन और वेल कम एवं बोर्ड लगाये गये थे । फलौदी की जनता में इस प्रकार का उत्साह फैलने के कई कारण भी थे; सर्व प्रथम तो आप ढूंढ़ियों से निकल कर आये थे, द्वितीय आपकी प्रशंसा पहिले से फैली हुई थी। फलौदी में मुख्यतः तीन गच्छ हैं, किसी एक गच्छ का साधु आता तो वे सब के सब इस प्रकार उत्साही नहीं बन जाते थे, किन्तु आपके लिये तपागच्छ वालों ने तो यह समझ लिया कि योगिराज रत्न विजयजी ने आपको दीक्षा दी है अतः आप हमारे वपागच्छ में हैं; खरतर गच्छ वालों को पहिले से गुमानमुनिजी कह गये थे कि ढूंढ़ियों से आया हुआ गयवर मुनि अच्छा विद्वान