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आदर्श - ज्ञान द्वितीय खण्ड
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कारण लोग उनको खर तर २ कहने लग गये थे, उस समय यह खर तर शब्द अपमान रूप में समझा जाता था | बाद वही खरतर शब्द गच्छ के रूप में परिणित हो गया ।
मांगी० – गवरचन्दजी आपने थोड़े ही दिनों में बहुत अभ्यास कर लिया और खरतरगच्छ के तो तुम कट्टर शत्रु ही वन गये हो, किन्तु यह सब बिना गुरु गम्यता से ग्रंथ पढ़ने का ही परिणाम है कि तुम इस प्रकार खर तर गच्छ के प्रतिकूल हो गये हो, किन्तु मेरी सलाह मानो तो एक बार मेरे साथ बंबई कृपाचंद्रसूरि के पास चलो तो आपकी इन सब शंकाओं का ठीक समाधान हो जायगा
मुनि० - तुम मेरे साथ पैदल चलोगे या गाड़ी में ?
मांगी० - मैं तो रेल द्वारा जाऊँगा और आपभी मेरे साथ रेल में चलोतो क्या हर्ज है बंबई चलकर पुनः दीक्षा तो लेनी ही है ?
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मुनि० - वाह । मांगीलालजी आपने खूब ही सलाह दी, - आप पतित बने सो तो बने ही किन्तु दूसरों को भी पतित बनाने की राय देने को तैयार हुए हैं। खैर मैंने तो संवेगियों में दीक्षा ले ली है, और दूँ ढियों से निकल कर कच्चा पानी पीना या रेल में बैठने वालों को मैं पतित समझता हूँ, क्योंकि ढूंढियों में भी पांच महाव्रत वे ही थे जो संवेगियों में हैं। केवल अज्ञानवश श्रद्धा विपरीत थी, जब इस बात का ज्ञान हुआ तो श्रद्धा शुद्ध कर ली किन्तु पांच महाव्रत तो वे के वे ही रहे । जिस कच्चे पानी की बूंद में असंख्य जीव समझ उसका संगठा तक भी नहीं किया जाता था, वही लोग कच्चा पानी पी जावें फिर उसके हृदय में