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स्त्रियों को जिन पूजा निषेध
अह प्रणया कयाई, रूहिरं दट्ट्टण जिणहरे रूहो । इत्थीणं पच्छिनं देह, जिणच पडिसेहं ।। ३५ ।। संधुति भय पलाएणे, पट्टणओ ऊट्ट वाहणा रूढ़ो । पत्तो जाबलीपुरं, जण कहणे भरणइ विज्जाए || ३६ || " प्रवचन परीक्षा प्रन्थ पृष्ठ २६७ "
क्या यह अर्द्ध ढौंढक की श्रद्धा नहीं है ? क्या इसको उत्सूत्र नहीं कहा जा सकता है ? इसके अतिरिक्त खर-तरों ने प्ररूपना की थी कि पर्व के सिवाय पौषध नहीं हो सकता है और सूत्र में कई स्थान पर चतुर्दशी, पूर्णिमा, और त्रयोदशी या प्रथमा के पौषध अर्थात् अष्टम् तप का उल्लेख मिलता है, तथा खरतरों ने आहार कर के ( एकासना या अंबिल ) पौषध करना भी निषेध किया है जो श्री भगवती सूत्र में शंख पोखली का स्पष्ट पाठ है कि उन्होंने आहार पानी खाते पीते पौषध किया था ।
मांगी० - अभयदेवसूरि जो नौ अंग टीकाकार हुए हैं, किस में हुए हैं आपकी क्या मान्यता है ?
गच्छ
मुनि०- -इस विषय का मैंने इतना अभ्यास तो नहीं किया हैं किन्तु इतना तो मैं जानता हूं कि नौ अंग टीकाकार अभयदेवसूरि महावीर के पांच कल्याणक मानने वाले थे, अतः वे खरतरगच्छ में तो नहीं हुए थे वे आप अपने को चान्द्रकुल के होना बतलाये हैं । मांगी० - खरतरगच्छ की उत्पत्ति आप कब से मानते हैं ? मुनि० - जिनवल्लभसूरि ने महावीर के छः कल्याणक की प्ररूपना कर इसकी नींव डाली और जिनदत्तसूरि ने स्त्रियों को जिन पूजा निषेध की, अतः प्रश्नोत्तर के समय आपकी खरतर प्रकृति के
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