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भादर्श - ज्ञान द्वितीय खण्ड
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पुरुष जिनपूजा करते हैं वैसे स्त्रियाँ भी पूजा करती हैं। द्रौपदी, मृगावती, चैलना जयन्ति वग़ैरह स्त्रियों ने पूजा की है तो फिर खर तरगच्छ वालों ने स्त्रियों को जिनपूजा का निषेध किया, यह उत्सूत्र की प्ररूपना है या नहीं, तुम स्वयं अपनी बुद्धि से विचार लो ?
मांगी० - स्त्री पूजा का निषेध नहीं किंतु ऋतुवती स्त्रियों के लिए निषेध है और इस निषेध का करने वाला ऐसा वैसा व्यक्ति नहीं किंतु बड़ा दादाजी श्रीजिनदत्तसरि हैं ।
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मुनि - क्या जैन समाज में दादाजी के पूर्व ऋतुवती स्त्रियाँ जिनपूजा करती थी, और इसको किसी आचायों ने निषेध नहीं किया जिससे जिनदत्तसरि को निषेध करना पड़ा ? आपने अभी तक खरतरों के ग्रन्थों को पढ़े नहीं होंगे, देखिये खास खरतरगच्छ वालों ने ही लिखा है कि :
'संभव आलेsविदुकुसुमं महिलाण तेण देवाणां । पूचाइ अहिगारो न, श्रोत्र सुत निद्दिशे ॥ १ ॥ न विविंति जहा देहं श्रोसरभाव जिरणवरिंदाणं । तह तपडिमपि सया पूति न सड्ढ नारियो || २ ॥'
'जिनदत्तसरि के बनाये कुलक की यह गाथाएं हैं, इस पर जिनकुशल सरि ने विस्तार में वृत्ति भी रची है।'
इस गाथाओं में तो जिनदत्तसूरि ने स्पष्ट कहा कि स्त्रियों का अकाल में ऋतुवती होना संभव है, तथा भाव जिनको स्त्रियाँ छी नहीं सकती थीं, इस कारण श्राविकाएं पूजा न करें ।
उपरोक्त खरतराचायों के कथन को पुष्ट करने वाला एक और भी प्रमाण मिलता है कि पट्टण के मन्दिर में जिनदत्तसूरि दर्शन करने को गये थे वहाँ रूद्र के छांटे देख कर कहा था कि :