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मुनिश्री और मांगीलालजी
नीचे कच्चा पानी पीकर ऊपर आया, थोड़ी देर इधर उधर की बातों के पश्चात् मांगीलाल जी ने पूछा कि:
मांगीलालजी-गयवरचन्दजी क्या तुमने संवेगी दीक्षा लेली ? मुनि:-हां। मांगी-किस के पास ? मुनि--परमयोगीराजमुनिश्री रत्नविजयजीमहाराज के पास । मांगी०-वे तो तपागच्छ के हैं ? मुनि०-इससे क्या हुआ ?
मांगो०-तपागच्छ वाले तो उत्सूत्रभाषी मिथ्यात्वी हैं । शुद्ध समाचारी तो एक खरतर गच्छ की ही है, आपने निर्णय किया है या यों ही ढूढियापना छोड़ कर मिथ्यात्व में जा घुसे हैं ।
मुनि-मैंने निर्णय पूर्वक ठीक सोच समझ के ही काम किया है पर तुम जो तपागच्छ को उत्सूत्रभाषी कहते हो, इसका क्या कारण है ?
मांगी-तपागच्छ वाले भगवान महावीर के पांच कल्याणक मानते हैं, वास्तव में सूत्रों में छ कल्याणक लिखा है, इसलिए तपा गच्छ वाले सब मिथ्यात्वी हैं । ___ मुनि०--तबतो आचार्य श्री हरिभद्र सूरि और अभयदेव सूरि भी मिथ्यात्वी ही होंगे क्योंकि उन्होंने भी तो भगवान महावीर के पांच कल्याणक ही माने हैं। . मांगी०-हरिभद्रसूरि और अभयदेवसूरिने महावीर के पांच नहीं अपितु छः कल्याणक माने हैं, और अभयदेवसूरि तो खास खरतरगच्छ के थे वे पांच कल्याणक कैसे मान सकते थे ?