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भादर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
किया कि आपने पहिले से ही कहा था कि यहाँ गच्छों के बहुत झगड़े है। ५२ माँगीलालजी से वार्तालाप
थोड़े ही दिनों के बाद का जिक्र है कि मुनिश्री ऊपर क कमरे में विराजते थे. नीचे एक पीले वस्त्र पहिने हुए साधु आया जो अकेला ही था, अतः दरवाजे में प्रवेश करते ही मुनीमजी ने पूछाः
मुनीम०-आपका क्या नाम है ? पीत वस्त्रधारी-मेरा नाम मांगीलाल है।
मुनीम०-सोचा कि संवेगी साधुओं का तो ऐसा नाम नहीं होता है, अतः फिर पूछा कि इस समय आप कहां से पधारे हो ?
पात-मैं आज जोधपुर से आया हूँ । मुनीमः-पदल आये हो ? पीत:-नहीं, रेलगाड़ी से आया हूँ। मुनीम-फिर ये पीले वस्त्र क्यों । क्या आप संवेगी हैं ? पोत-मैं संवेगी साधु नहीं हूँ। मुनीम०-तो आप कौन हैं ? पीत-मैं दांडिया साधु था। मुनीम-किसी संवेगी साधु के पास दीक्षा ली है या नहीं ? पीत०-दीक्षा तो नहीं ली, किन्तु लेने का विचार करता हूँ।
मुनीम-फिर यह पीली चहर ओढ़ कर संवेगी साधुओं को कलङ्कित क्यों करते हो ?
पीत-इसमें कलंकित करने की क्या बात है ? मीनम:-पीली चद्दर से लोग यही जानेंगे कि यह संवेगी