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मुंहपत्ती का डोरा दूर करना
ने पूज्य भाव से हो बहुमान किया है । इसका कारण यह है कि जैन समाज पर उपकेशगच्छ का बड़ा भारी उपकार है । आज जो ओसवाल, पोरवाल, श्रीमाल आदि जातियाँ जैन धर्म पालन कर जैन धर्म को चला रही हैं। यह उपकार उपकेशगच्छाचायों का ही है, अतः मैंने तुमको उपकेशगच्छ के लिये आदेश दिया है ।
दूसरे, मुझे मालूम हुआ है कि तुम यहाँ से फलौदी जाओगे । वहाँ साध्वियों की जमात बहुत रहती है और साधुओं के साथ उनका बहुत परिचय भी है । मैं तुमको सलाह देता हूँ और कहता हूँ कि तुम मेरे इस कहने को हर समय याद रखना कि बिना व्याख्यान के साध्वियों या बाइयों को मकान पर न आने देना और न उनके साथ किसी प्रकार का विशेष परिचय ही रखना ।
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मुनि० - आपका कहना अक्षरशः सत्य और हितकारी है । इस कलिकाल में ऐसी सलाह देने वाले श्राप जैसे विरले ही पुरुष हैं। मैंने तो इस उम्र में केवल आपको ही देखा है । गुरु महाराज ! मैं आपका उपकार क्या इस भव में और क्या पर भव में कहीं भी और कभी भी नहीं भूल सकूँगा । ढूँढियापन में भी मुझे इस बात की बड़ी चिढ़ थी कि बिना व्याख्यान के कोई भी साध्वी या बाई स्थानक पर आवें, पर आपने तो आज कृपा कर साफ साफ ही फरमा दिया है ।
योगी - ठीक, लो मुह पत्ती का डोरा तो निकाल दो । मुनिश्री ने अपने मुँह पर से मुंहपत्ती उतार कर योगीराज के हाथ में दे दी और गुरुवर ने उस अप्रामाणिक मुँहपत्ती और डोरे को तोड़ फाड़ कर परठ देने का आदेश दिया । फिर पेडी से कपड़ा मंगवा कर प्रामाणिक मुंहपत्ती बना कर देदी, जिसको