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आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
३२६ किसी जिनदेव श्रावक ने रंगमण्डपादि स्मर काम करवाया है। और यह ६०२ वाला लेख तो और भी अधिक पुष्टि कर रहा है। इनके अलावा वि० सं० १०११ में इस मन्दिर में आचार्य कक्कसूरि की अध्यक्षता में होने वाला शान्तिपूजा का शिलालेख इसी मन्दिर में विद्यमान है इससे तुम समझ सकते हो कि १०११ तथा ६०२ पूर्व यहां उपकेश वंश एवं महावीर मन्दिर विद्यमान था। ____ मुनि-यदि मन्दिर प्राचीन हो तो क्या और अर्वाचीन हो तो क्या, ऐसे टूटे-फूटे शिलालेख से क्या होने वाला है ? ____योगि-अभी श्रापको इस बात का अनुभव नहीं है पर जब कभी इस ओर लक्ष्य पहुँचेगा, उस समय आप को हजारों लाखों प्रयत्न करने पर भी ऐसी प्राचीन सामग्री नहीं मिलेगी । अतः मेरे कहने से ही आप इस शिलालेख को लेकर सुरक्षित स्थान में रख दो। ____ मुनि श्री ने मुनीम चुन्नीलाल भाई से कहा कि गुरु महाराज के इस कथन में जरूर कोई छिपा रहस्य होगा, जो आज अपने को नहीं दीखता है । तथापि यह शिलालेख वाला पत्थर उठा लो
और अच्छे सुरक्षित स्थान में रख दो। ___मुनीम उस पत्थर को एक आदमी के शिर पर रख कर धर्म शाला में लाया और उसको एक अच्छे स्थान में रख दिया।
इस शिलालेख ने योगिराज की आत्मा में इतनी प्रेरणा भर दी कि वे जब कभी अवकाश मिलने, पर प्राचीनता की शोध में निकल जाते और जहाँ तहाँ जंगल में भमण किया करते । आपने दो दो तीन तीन कोस तक इस नगर के खण्डहरों का पता लगाया था । खेद है कि उस समय हमारे चरित्रनायकजी की रुचि ऐसे कार्यों में