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प्राचीन स्थानों की शोध
भाग में एक टूटा हुआ पत्थर था, जिस पर कुछ अक्षर खुदे हुए थे । जब योगीराजश्री ने उसे खूब बारीकी से देखा तो उसमें___"सं० ६०२ वैशाख मासे शुक्ल पक्षे तृतया उपकेश शे अदित्यनाग गौत्रे शाह......................." __ स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। इसके आगे का शेष भाग टूट गया था। ___ योगिराज ने कहा "मुनिजी ! यह शिलालेख बहुत काम की वस्तु है । मेरे खयाल से यह उपकेशवंश का प्राचीन शिलालेख है । अतः आप इसको सुरक्षित रख लीजिये।
मुनि-गुरुवर्य, ऐसे टूटे हुए पत्थर को लेकर क्या करेंगे ? और इससे लाभ भी क्या है ?
योगी-इस समय भापकी दृष्टि में इससे कोई लाभ नहीं होगा, पर जब कभी आपकी इसको जरूरत पड़ेगी तो यह आपको अमूल्य रत्न का काम देगा। अतः इसको आप संभाल कर रख दीजिये। ___ मुनि-ऐसा एक शिलालेख तो अपने मन्दिर में भी लगा
योगी-वह भी इसी प्रकार किसी खण्डहर से आया हुआ है।
मुनि-क्या वह मन्दिर वाला शिलालेख अपने महावीर मन्दिर का शिलालेख नहीं है ? ____ योगी-नहीं, महावीर मन्दिर तो विक्रम से ४०० वर्ष पूर्व बना है और वह शिलालेख वि० सं० १०१३. का है। दूसरा उस शिलालेख में न तो महावीर मन्दिर बनाने या प्रतिष्ठा करवाने का उल्लेख है और न किसी भाचार्य का ही नाम है । उसमें तो केवल