________________
भादर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
३२९
पसंद नहीं है, किन्तु आप की शुभ दृष्टि से ही हम लोगों का कल्याण है और मुनिजी के सहयोग की तो इसमें परम आवश्यकता है फिर भी वह सब आपकी अतुल कृपा का ही फल है ।
योगी-अच्छा, मुनिजो कल विहार करेंगे। . मुनिम-मैं भी सेवा में साथ जाने को तैयार हूँ।
मागसर कृष्ण १० को गुरू महाराज का मांगलिक सुन कर मुनीम के साथ विहार कर दिया। उन्होंने पण्डितजी की ढाणी, रायमल वाला खेतार वगैरह आस-पास के गांवों में जाकर विद्या का महत्व लोगों को समझाया और यहां तक विश्वास दिलाया कि तुम तुम्हारे लड़का को खुशी से ओसियां पढ़ने के लिए भेजो, इनका बाल भी बांका न होवेगा। यदि ओसियाँ रहने में तुम्हारे लड़कों को कुछ भी तकलीफ हो तो हम स्टाम्प के काराज पर तुमको दस्तखत कर दें कि तुम्हारे लड़के के बदले हम तुमको लड़का देवेंगे इत्यादि । १० दिन घूम कर सात लड़कों को लाये
और मुनीम नोटावट जाकर ४ लड़के वहाँ से लाया। इस प्रकार ११ बड़के जैनों के और ४ लड़के जैनोत्तरों के, कुल १५ लड़के बोर्डिंग में हो गये। जब मास्टर की आवश्यकता हुई तो एक वहाँ के ही ब्राह्मण को मास्टर रख लिया गया तथा सदासुख-सेक्ग की साली समरथ बाई को रसोईदार निश्चत कर लिया। इस कार्य में मुनीम चुन्नीलाल भाई बड़ा ही हुशियार था, उसने सब तरह की व्यवस्था ठीक जमा दी।
बोडिंग का काम बढ़ने लगा तो इस पर एक आदमी की आवश्यक्ता प्रतीत होने लगी। गुरू महाराज की शुभ दृष्टि से जोधपुर के श्री श्रीमाल चौथमलजी नौकरी के लिए वहां आ निकले।