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जोधपुर में लिखिन की चर्चा और कहीं हस्ताक्षर नहीं करवाये जाते, अलबत्ता अविश्वासी एवं चोरों के लिए ऐसा कार्य अवश्य होता है । साधुओं में चोरों की भांति हस्ताक्षर करवाना तो हमने कहाँ पर भी नहीं देखा है। संयम लेना और पालना तो आत्मा की साक्षी से होता है । पर हस्ताक्षर करवा कर जबर्दस्ती फन्दा में फँसाये रखना, भले! ऐसी दूकानदारी कहां तक चल सकेगी। खैर, मैं एक बार पूज्य जी महाराज से मिल कर इन १२ कलमों का खुलासा न करल, तब तक इस लिखत के विषय में कुछ भी नहीं कह सकता हूं। ... शोभा-आप मेरे साथ चलकर पूज्यजी महाराज से मिल कर निर्णय कर लेवें।
गयवर०-इस समय गर्मी सख्त पड़ती है, और पूज्यजी भी मालवा में दूर हैं, अतः चतुर्मास के बाद में जाकर पूज्यजी से मिल सकता हूं।
शोभा०-किन्तु पूज्यजी महाराज की तो यह आज्ञा है कि इस लिखत के नीचे सिद्धों की साख से हस्ताक्षर कर देवें तो गयवरचन्दजी को शामिल रखना, नहीं तो समुदाय से अलग कर देना। .
गयवर०-जैसी आपकी इच्छा; किन्तु मैं पूछता हूँ कि पाली में आपने ऐसा ही लिखत के नीचे हस्ताक्षर किये थे, या वह लिखत कोई और था ?
शोभा०-हां, यह उस लिखत की ही नकल है।
गयवर०-वाह शोभालालजी ! धन्य है आपकी श्रद्धा को, धन्य है आपकी प्रतिज्ञा को, धन्य है आपकी सत्य-प्रियता एवं वीरता को, और धन्य है आपकी लिखत-प्रवृति को! क्या श्राप