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आदर्श - ज्ञान द्वितीय खण्ड
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बनाई हुई स्थापना में नहीं । अतः मोहनलालजी तपागच्छ की स्थापना रखते थे और क्रिया भी तपागच्छ की ही करते थे ।
मुनि० - अच्छा तो आप जो यह स्थापना लाये हैं, वे कितने -मूल्य की होगी ?
चंदन - इसके ईरान में सवासौ रुपये लगे हैं । इसमें -मूलनायकजी हैं जो बड़े ही सुलक्षण वाले हैं।
मुनिः - क्या इसकी भी प्रतिष्ठा होती है ?
चंदन० -- हाँ, प्रतिष्ठा होने के पहिले यह वन्दनीय नहीं समझे जाते हैं, जैसे मूर्ति की प्रतिष्ठा का विधान है, वैसे ही स्थापना जी की प्रतिष्ठा का भी विधान है। मैं अभी श्रोसियाँ में हो कार्तिक शुक्ला पंचमी ( ज्ञान -पंचमी) को गुरू महाराज से प्रतिष्ठा करवा के लाया हूँ ।
मुनि० - अच्छा, श्रावकजी ! यह लाभ आपको ही है । चंदन ० - महाराज ! हम लोगों के भाग्य ऐसे कहाँ हैं कि - इस प्रकार से लाभ मिल सके। वैसे देखा जाय तो संसार के कार्यों में तो अनेक प्रकार से खर्च हो जाता है पर ऐसे परमार्थ का अवसर तो कभी कभी हो आता है ।
इस प्रकार चन्दनमलजी अनेक बातें कर एक दिन यहाँ ठहरने के बाद मेवाड़ में पधारने की श्राग्रहपूर्वक विनती कर चले गये । मुनिश्री के चातुर्मास करने से तीवरी की जनता पर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ा । ज्ञान, ध्यान, तपश्चर्या, पूजा, प्रभावना आदि बहुत उत्साह से हुए। मंदिर मूर्ति की ओर लोगों की श्रद्धा भी दृढ़ एवं बढ़ती रही ।
तोवरी में जैन श्वेताम्बर सभा नामक एक संस्था स्थापित हुई