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आदर्श ज्ञान द्वितीय खण्ड
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मस्तक से स्पर्श की, उस समय का दृश्य जनता के हृदय में जैन शासक के विनय का एक अपूर्व भाव पैदा करता था ।
सब लोगों ने शासनाधीश भगवान महावीर की जय ध्वनि के साथ मंदिर में आकर वन्दन, स्तुति एवं चैत्यवन्दन कर अपने आप को भाग्यशाली समझा मन्दिर में जितने भाई बहिन थे, उन सबको डोरो डाल मुँहपत्ती बँधाने का त्याग तथा दिन में एक बार मँदिरजी के दर्शन का नियम दिलवा दिया गया । बाद मँदिर से धर्मशाला में आये । सब संघ ने गुरु महाराज को वन्दन किया । गुरु महाराज ने तोवरी के लोढ़ाजी वग़ैरह की ओर इशारा कर कहा कि 'लो भाई ! बोर्डिंग का बीज तो हमने बो दिया है, किंतु अभी तक बाहर प्रामों का एक भी लड़का नहीं आया है । इसका कारण यह है कि लोगों में व्यर्थ ही यह ग़लतफ़हमी फैली हुई है कि ओसवाल का लड़का ओसियां में रात्रि में नहीं ठहर सकता है । अतः दो सेवग, एक महेश्वरी और एक ब्राह्मण, इस प्रकार कुल चार लड़के आते हैं, जिनका गुरु (मास्टर) मैं हूँ । अब हमारे मुनिजी आ गये हैं, यदि पुरुषार्थं करके आप अपने लगाये हुए पौधे को सींचते रहेंगे तो श्राशा है कि इसका शुभ फल अवश्य ही मिलेगा ।
मुनिश्री ने तीवरी के श्रावकों को प्रभावशाली उपदेश दिया। परिणामस्वरूप उन्होंने अपनी २ शक्ति के अनुसार बोर्डिंग के लिए द्रव्य द्वारा सहायता दी । फिर वे दो दिन यात्रा कर वापिस लौट अपने ग्राम को चले गये ।
यों तो तीवरी के हाल समय २ पर ओसियाँ पहुँच हो जाते थे, किंतु मुनिश्री ने गुरु भक्ति से प्रेरित होकर वहाँ के सब हाल