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आदर्श - ज्ञान द्वितीय खण्ड
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इन प्रश्नों के उत्तर में सागरजी महाराज ने लिखा था कि अगर तु को इन प्रश्नों का उत्तर लेना है तो हमारे रूबरू आ कर ले लो ?
तीसरा पत्र आचार्य श्री विजयनेमिसूरि को सादड़ी दिया, जिसमें निम्नलिखित प्रश्न किये थे:
(i) प्रश्न व्याकरण सूत्र तीसरा संबर द्वारा में साधु को प्रतिदिन फल, फूल, हरी, वनस्पति को गृहस्थ से आज्ञा लेना लिखा है । इसका क्या कारण है ? क्या पूर्व जमाना में साधु फल, 5. फूल, हरी काम में लिया करते थे ? यदि लेते थे वे सचित थे या चित ? (२) पन्नवणा सूत्र पद पहला में 'लहसन' को साधारण वनस्पति कहा है, तब उत्तराध्याय अ० ३६ में लहसन को प्रत्येक कार्य में गिना है, इसका क्या कारण है ?
(३) जब श्रावक की उत्कृष्ट गति १२ वें देवलोक तक की है, तब परिहार विशुद्ध चारित्र प्रतिसेवी होने पर भी उसको ८ वें देवलोक तक जाना बतलाया है, इसकी क्या वजह है ?
इसका उत्तर आया कि पत्र में कितना लिखा जावे, उत्तर रूबरू लेना ही अच्छा है चतुर्मास के बाद तुम यहां आ जाना | चौथा पत्र आचार्य विजयकमलसूरि और मुनिश्री दान विजय जी को लिखा, जिसमें निम्नलिखित प्रश्न किये गये थे:[१] एक प्रकाश प्रदेश पर अजीब के ५६० भेदों में से कितने भेद मिलते हैं ?
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8 नोट- जब सूरत में मुनिश्री सागरजी से मिले तो प्रश्नों के उत्तर के लिए कहा कि अभी तो मुझे अवकाश नहीं है, फिर समय मिलने पर सूत्र निकाल कर देखेंगे मतलब टालमटाल का ही था ।