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उदयपुर के प्रश्नोत्तर
उदयपुर में एक सार्वजनिक सभा कर के स्थानकवासी समाज को आमन्त्रित किया गया और कहा गया कि आप हमारे प्रश्नों का उत्तर दें या न दें, किंतु आपके पूछे हुये १५१ प्रश्नों का उत्तर हम सार्वजनिक सभा में देने को तैयार हैं। कृपया आप प्रश्नों का उत्तर समझ कर ले लें । इस हालत में कोई भी स्थानकवासी प्रश्नों का उत्तर लेने को नहीं आया। हाँ, सभा देखने को कई लोग अवश्य आये थे । दूसरे राजकर्मचारी एवं जैनेतर लोग भी सभा में बहुत थे । आचार्य विजयधर्मसूरि की अध्यक्षता में मुनिश्री न्यायविजयजी ने स्थानकवासियों के किये हुए १५१ प्रश्न और उनके उत्तर सभा के समक्ष सुना कर अपने ऊपर जो प्रश्नों का वजन था उसको उतार दिया, किन्तु स्थानकवासी समाज पर जो १०८ प्रश्नों का भार था वह ज्यों का त्यों रह गया, केवल उनमें से ८ प्रश्नों का उत्तर जवाहरलालजी स्वामी की ओर से छपा था। पर वह भी विद्वानों को संतोष जनक प्रतीत नहीं हुआ। उसमें निरा वितंडावाद ही झलक रहा था। ___ इस वाद-विवाद में आचार्य धर्मविजयसूरि की इच्छा थी कि गयवरचदजी को यहाँ बुला कर पूज्य श्रीलालजी की विद्यमानता में खूब ठाठ के साथ दीक्षा दी जाय, जिससे स्थानकवासी समुदाय पर गहरा प्रभाव पड़े। अतः आपने परम योगिराज रत्न विजयजी महाराज को जोर देकर लिखा और आदमी भेजा; किन्तु ऐसा करना न तो योगिराज ही चाहते थे और न इसे मुनिश्री ही उचित समझते थे । इसका कारण यह था कि आज
आप भले ही श्रीलालजी से अलग हो गये हों किन्तु उनका उपकार ता आप पर था ही जिसको कि आप भूल नहीं गये थे।