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चन्दनमलजी और स्थापनाजी
चंदन० - मेरे पास हैं और आपको देने के लिए ही लाया हूँ। इसके लिए योगिराजश्री की सम्मति भी मैंने ले ली है। मुनि - तो फिर लाइये देरी किस बात की है ?
चंदन०- पर एक बात है कि जब आप खरतरगच्छ वालीस्थापना वापिस देंगे तो वे मुझ पर ही संदेह करेंगे ।
मुनि - इसमें संदेह की क्या बात है । मैं तो योगिराज रत्न विजयजीमहाराज को अपना गुरू बना चुका हूँ। इसलिए जैसा वे कहेंगे वैसा ही तो मैं करूँगा ।
चंदन०—तब यह स्थापनाजी हाजिर हैं । आपको ज्ञात होगाकि स्थापनाजी के लिए श्री भद्रबाहुस्वामी ने एक स्थापना कुलक बनाया है, जिसमें स्थापनाजी के सुलक्षण लिखे हैं । उनमें से बहुत सुलक्षण इन स्थापनाजी में हैं ।
मुनिजी ने स्थापनाजी को नमस्कारपूर्वक ग्रहण कर लिया और पूछने लगे कि क्या यह मूल्य से मिलता है ?
चंदन० - हाँ मोहनलालजी महाराज के पास एक ही स्थापनाजी सहस्र रुपयों का था ।
मुनि०- लेकिन सुना है कि मोहनलालजी महाराज तो खरतरगच्छ के यति थे । फिर उन्होंने तपागच्छ की स्थापना क्यों रखी थी ?
चंदन० - यह ठीक है कि मोहनलालजी खरतरगच्छ के यति थे, पर वे क्रिया तपागच्छ की ही करते थे । उनके शिष्य पन्या स हर्ष मुजी भी फलौदी में हैं। वे भी तपागच्छ की ही क्रिया करते हैं । इसके अलावा भद्रबाहुस्वामी ने जो स्थापना के लक्षण. बतलाये हैं वे प्रकृतिक (सभावी) स्थापना में ही होते हैं, चंदन की