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आदर्श ज्ञान द्वितीय खण्ड
२८४ अधिपति बन कर रहेंगे। इसका भी प्रापजरा विचार करलीजिए।"
मुनि-"क्या आप नहीं जानते हैं कि समकित के साथ तो सातवी नरक में रहना भी अच्छा है, किंतु समकित के बिना चक्रवर्ती जैसी ऋद्धि या देवताओं के सुख भी निष्फल रही है।" ___ इस पर सब आये हुए श्रावक समझ गये कि यहां कार्यसिद्धि की आशा नहीं है। अतः वे वहां से विवश होकर उठ कर नीचे गये और भोजन आदि से निवृत्त होकर गाड़ी के समय पर स्टेशन के लिए चल पड़े।
४० योगीराज की नेक सलाह __पास के कमरे में बैठे हुए योगीराज, मुनिजी और श्रावकों के श्रापस के वार्तालाप को सुन कर बड़े प्रसन्न हुए। तत्पश्चात् दोनों महात्मा प्राम में भिक्षा के लिए पधारे । ओसीयां ग्राम में जैनों का तो एक भी घर नहीं था, केवल कुछ माहेश्वरी लोगों के घर थे और वे योगीगज के पास आकर उपदेश सुनते थे, अतः वे लोग बाहर पानी देने की अच्छी भावना और व्यवस्था रखते थे। योगीराज का उपदेश सुनते रहने से वे आहार पानी देने की सब विधि भी जान गये थे जिसको कई श्रावक भी नहीं जानते थे। अस्तु दोनों मुनिवर ग्राम से भिक्षा ले आये।
गोचरी करने के बाद फिर धर्म चर्चा होने लगी। योगीराज ने ओसियां नगरी और आचार्य रत्नप्रभसरि का इतिहास सुनाया। वे कहने लगे कि रत्नप्रभसूरि प्रतिबोधित क्षत्रियों के अट्ठारह गोत्र हुए हैं। जिनमें राजा उत्पलदेव को संतान श्रेष्टि गोत्र कहलाती है।