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पूज्य पदबी की प्रार्थना
की है। साथ ही में यह भी निश्चय कर चुका है कि जो भूलेभटके लोग उन्मार्ग पर जा रहे हैं, मैं उनको उपदेश देकर सन्मार्ग पर लाने का प्रयत्न करूँगा। यदि आप इस विषय में मुझ पर कोई रोक-टोक न करने का पक्का विश्वास दें तो मैं आपका कथन स्वीकार कर सकता हूँ। ___ श्रावक-महाराज ! यह बात तो कैसे बन सकेगी ? हम व्यापारी लोग जिस दुकान पर बैठते हैं, उसी की पुष्टि करते हैं, दूसरी की नहीं। इसी भांति आप स्थानकवासी समुदाय में रहें और उपदेश मूर्ति का दें यह तो कैसे हो सकेगा ?" . __ मुनि-किंतु मैं भी क्या करूं ? मेरे तो रोम २ में मूर्ति ने स्थान कर रखा है। जब कभी मैं आत्मकल्याण का उपदेश देता हूँ तो सवसे पहिले मर्ति का उपदेश ही उसकी भूमिका बन जाती है । ____ श्रावक-आप समझदार हैं, यदि मूर्ति पूजा का उपदेश न दें तो भी श्रात्म-कल्याण के लिए बहुत से उपदेश दिये जा सकते हैं। - मुनि-"किन्तु जान-बूझ कर इस प्रकार सत्य धर्म को छिपा रखने से मिथ्यात्वका दोष भी लगता है न ?" ... श्रावक-"महाराज ! आप आई हुई पूज्य पदवी को क्यों ठुकराते हैं ?
मुनि-पर मिथ्यात्व के सामने पूज्य पदवी की क्या क़ीमत है ? मैं एक थोड़ी सी वाह वाह ! के लिए मिथ्यात्व का सेवन करना इस लोक तथा परलोक दोनों ही के लिए हित का कारण नहीं पर अहित का हो कारण समम I हूँ। ____श्रावक-"महाराज ! यहाँ आपको वापिस दीक्षा लेकर किसी के आधीन शिष्य बन कर रहना पड़ेगा और वहां सौ साधुओं के