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तीर्थोद्धार की योजना
सामयिक पत्रों में इस तीर्थ के विषय के लेख प्रकाशित कराये जायं, दूसरे इस विषय की पुस्तकें (ट्रेक्ट ) छपवा कर उन्हें विस्तृत संख्या में अमूल्य वितरण कराया जावे, तीसरे इस तीर्थ पर एक विद्यालय स्थापित किया जावे । भुनिश्री का व्याख्यान एवं उपदेश श्रोतावर्ग ने बहुत ही रुचि के साथ ग्रहण किया तथा सब के दिल में यह बात जच गई कि मुनिजी की योजना अवश्य ही कार्य रूप में परिणित की जाय । सब से पहिले तीवरी वाले लूणकरणजी लोढा ने कहा कि यदि यहाँ बोर्डिंग स्थापित किया जाता हो तो ये ११) मैं मुहूर्त के तौर पर देता हूँ, तथा विश्वास दिलाता हूँ कि मैं भविष्य में भी इसकी सहायता करता रहूँगा। दूसरे लोगों ने कहा, "क्या ११) रुपयों से बोडिंग स्था. पित हो सकता है ?" कम से कम दस-बीस हजार का चन्दा होना चाहिये । ऊपर बिराजे हुए रोगीराज ने कहा कि ११) रुपयों में तो सब कुछ हो सकेगा । आप रो इन रुपयों को शुभ शकुन समझ कर हाथ बढ़ा कर ले लीजिये। योगीराज के वचन पर सबको विश्वास था । अतः वे ११) रुपये लेकर उन पर कुंकुम के छींटे डाल कर गुरु महाराज का वासक्षेप हलवा कर शुभ स्थान में रख दिये गये । फूलचन्दजी ने योगीराज से निवेदन किया कि मुनिजी का चातुर्मास इसी तीर्थ पर हो तो बहुत अच्छा है। इससे बोर्डिङ्ग वगैरह विचारी हुई सब योजना सफल हो जावेगी। किंतु गुरुवर ने अपनी ओर से यह प्रगट करते हुए फरमाया कि सेठजी ! ऐसा नहीं हो सकता है। साधु को अपने दिये हुए वचन को तो निभाना ही चाहिये ।
सेठजी-"यह तो ढूंढियापने में दिया गया वचन है। दूसरे