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जोधपुर के श्रावकों से वार्तालाप
इस वार्तालाप से मिलापचन्दजी और दीपचन्दजी दोनों ही पर बड़ा प्रभाव पड़ा और उन्हें निश्चय हो गया कि साधु बड़े ही विद्वान् हैं और सौभाग्य से यदि आप संवेगी हो गये तो आप दूसरे आत्मारामजी होंगे । दीपचन्दजी और मिलापचन्दजी ने मुनिश्री से निवेदन किया कि चन्दनमल जी को बुलाने की आपको क्या श्रावश्यकता है ? जिस कार्य की आवश्यकता हो हमसे कह दीजिये हम लोग सेवा करने को तैयार हैं । इस पर मुनिश्री ने फरमाया कि इस समय मुझे और तो काई कार्य की आवश्यकता नहीं है । मैं केवल यही चाहता हूँ कि किसी विद्वान् संवेगी साधु से मिलूं ।
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दीप - बहुत अच्छी बात है । इस समय ओसियाँ में परम योगिराज, महान विद्वान् मुनिश्री रत्नविजयजी महाराज विराजे हुए हैं, जो आप १८ वर्ष ढं ढ़यों में रह चुके हैं। यदि आप फरमावें तो उनको यहाँ हम बुला लावें ।
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मुनिश्री — ऐसे विद्वान् महात्मा को क्यों कष्ट दिया जाय ? मैं स्वयं वहाँ जाकर मिल लूंगा, वहां जाने से मुझे श्रोसिया तीर्थं की यात्रा का भी लाभ प्राप्त हो जावेगा ।
दीप:- जैसी श्रापकी मरजी, यदि आपके साथ आदमी वगैरह की आवश्यकता हो तो फरमावें हम सब प्रबन्ध कर देंगे ।
मुनिश्री - नहीं, मुझे अपने साथ आदमी वग़ैरह की कोई आवश्यकता नहीं है । मैं तो स्वयं आदमी हूँ ।
दीप- ठीक है, आप ओसियाँ पधारें, हम लोगों को खबर मिलने पर हम भी वहां आयेंगे ।
इतना निवेदन करने के उपरान्त वे दोनों सज्जन बड़े हो हर्ष मनाते हुए वहां से चल कर जोधपुर पधार गये ।