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आदर्श-ज्ञान
२२२ नौहरा इतना विशाल होने पर भी मनुष्यों को बैठने के लिए जगह की कमी मालूम होती थी। सादड़ी के श्रावकों में सेठ बिरधीचंद जी. ऋषभदासजी, नाथूलालजी, राजमलजी, रामलालजी, फूलचन्दजी वगैरह अगुआ थे। एक फूलचन्द नामक नवयुवक स्कूल में पढ़कर उस समय ही आया हुआ था, धर्म की ओर उसकी अभिरुचि थी, तथा व्याख्यान सुनने में भी बड़ा प्रेम रखता था। ___एक तो मुनि श्री की श्रद्धा मूर्ति-पूजा की ओर झुकी हुई थी, दूसरा व्याख्यान में श्री राजप्रश्नी सूत्र का बांचना, फिर तो कहना ही क्या था, खुल्लम खुल्ला नहीं तो भी किसी न किसी प्रकार से मूर्ति पूजा की पुष्टि हो ही जाती थो । श्रीयुत फूलचंदजी ने इस
ओर ध्यान लगाया और उनकी रुचि निर्णय की ओर आगे बढ़ने लगी। मुनिश्री, चन्दनमलजी नागौरी के यहां से सूत्र लाकर आप भी पढ़ते और जहां मूर्ति का विषय आता वहां फूलचंदजी को भी पढ़ाते थे । आप ऐसी चतुराई से काम लेते थे, कि इतर श्रावकों को तो इस बात का पता भी नहीं लगता था ।
फूलचन्द नवयुवक होने पर भी अच्छा प्रज्ञावान श्रावक था; उसने अपने निर्णय के लिए कुछ प्रश्न लिख कर सेठजी अमरचन्दजी साहब के नाम पर पूज्यजी महाराज की सेवा में भेजे । सेठजी ने पत्र को पढ़कर पूज्यजी महाराज को पढ़ सुनाया; सेठजी और पूज्यजी समझ गये कि इन प्रश्नों का कारण गयवरचन्दजी ही हैं। किंतु इन प्रश्नों का उत्तर तो देना ही पड़ेगा, नहीं तो श्रावकों के दिल में शंका उत्पन्न हो जावेगी । अतः अमरचन्दजी साहब ने अपनी तस्वीर ( फोटू ) वाली फर्म पर उन प्रश्नों का उत्तर लिख कर भेजा, तथा अंत में लिखा था कि इन प्रश्नों