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आदर्श-ज्ञान
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___ नोट-इस प्रश्न के उत्तर में अर्थ का कैसा अनर्थ करडाला है क्योंकि न तो इस प्रकार का अर्थ टीका में है और न टब्बा में है फिर भी पक्षपात एक ऐसी बुरी बलाय है, कि उसमें मनुष्य अपना ज्ञान-भान तक भ भूल जाता है । फिर भी आपके लिखे हुये उत्तर में पूजा में शुभ योग और शुभ वन्धन तो आपने स्वीकार कर ही लिया है, जिससे पूजा का करना उपादेय अवश्य समझा जा सकता है। । यदि सेठजी के लिखे हुए उत्तर की ओर देखा जाय तो इस में मूर्ति पूजा का फल यावत्-मोक्ष होना झलकता हैं, जैसे कि आप लिखते हैं कि मित्र की तरह हितकारी, वांच्छित सुखों की प्राप्ति, मल रहित वस्त्र की तरह पवित्रता, उपद्रव्य रहित निर्विघ्नतापूर्वक दुखों से छूटना और सुखों के सन्मुख होना, इत्यादि । पाठक समझ सकते हैं कि पूर्वोक्त मूर्तिपूजा के फल में कल्याण का कारण स्पष्ट मलक रहा है । पूज्यजी महाराज एवं सेठजी कितने ही पक्षपाती हों, पर आपकी समझदारी में उत्सूत्र भाषण के पाप का भय स्पष्ट है । अतएव रूपान्तर अर्थ लिखने पर भी आपके हृदय के भाव नहीं छिप सकते हैं ।
६. छठे प्रश्न का उत्तर-उपचार नय की अपेक्षा जिन प्रतिमा को देवता स्थापना जिनवर समझते हैं, और द्रव्य पूजा की विधि में धूप देने की भी विधि है, जिससे धूवदाऊणं जिनवरणां'
____७. सातवें प्रश्न का उत्तर-१२ बोलों में ६ अनुकूल तथा ६ प्रतिकूल हैं, जिसमें सुरियाभ देवता सम्यग्दृष्टि भव्य आराधिक परतसंसारी शुक्लपक्षी और चर्म हैं।