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भादर्श-ज्ञान
२२८ एक है, और यहां आपने नयबाद को बीच में लाकर करणी में भेद डाल दिया है । फिर भी देवता, श्रावक, साधु की श्रद्धा प्ररूपना सात नय की बतला कर अज्ञ लोगों की मुवाफ़िक देवता
और श्रावक में भेद बतला रहे हैं । यही तो एक महान आश्चर्य की बात है ! फिर भी सब प्रश्नों का मिलान करने पर मूर्तिपूजा मोक्ष का कारण स्पष्ट सिद्ध हो सकता है । ___इन प्रश्नों के उत्तर से श्रीमान् फूलचंदजी और उनके साथियों के सोलह श्राना जंच गई कि शाश्वति जिन प्रतिमाएं तीर्थङ्करों की प्रतिमाएं हैं और उनकी सेवा, पूजा, उपासना करने से हित सुख कल्याण और मोक्ष का कारण होता है । चौथे गुण स्थान एवं चौदहवें गुण-स्थान को श्रद्धा एक है, इसका मतलब यह है कि जिस करणी में केवली धर्म माने. उसमें चतुर्थ गुण स्थान वाले भी धर्म समझते हैं। फिर देवता और श्रावक के बीच भेद बतलाना, यह सिवाय पक्ष-पात के और क्या है। यदि इतना भेद न हो तो अलग समुदाय ही क्यों कहलाता ? फिर भी आपके उत्तर के लिये तो हमें आपका उपकार ही मानना
चाहिये। ___चातुर्मास के अन्दर अतंत्य अशुभ कर्मोदय के कारण मुनिश्री के बादी की तकलीफ इतनी हो गई कि पथारी बिछौने ) से उठाबैठा भी नहीं जाता था। इस बीमारी का कारण यह हुआ था कि चार दिन तक वर्षा होती रहने से साधुओं के आचारानुसार इन दिनों में न आहार ला सके और न पानी। इधर तो चार दिनों के भूखे-प्यासे थे उधर सर्दी ने खूब जोर पकड़ा । तदुपरांत मकान में आंवली का झाड़ था, अतः रात्रि में वायु के चलने से