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मार्ग में मेघराजजी का मिलाप मेष-यदि मौन ही रखाजाय, तो उत्सूत्र का पाप क्यों लगे ? .. मुनि-अपने सामने किसी का अहित होता हो, उस समय मौन रखना लाभ है या नुक्सान ? .... मेघ-किन्तु दूसरे काभला करने में अपना नुक्सान होता होतो? - मुनि-अपने नुक्सान का काम तो नहीं करे, लेकिन अपने भले के साथ दूसरे अनेकों का कल्याण होता हो तो? ... मेघ-वह काम तो अवश्य करना चाहिये। · मुनि-वेष-परिवर्तन से अपना भला तो है ही, पर साथ में अनेक भद्रिक जीवों का भी भला है, कि जो वे कुमार्ग जाते हुए बच जावेंगे। .: मेघ-पर बेष-परिवर्तन से आपस में वैमनस्य बढ़ेगा, उसके फर्म-बन्धन का कारण भी तो होना पड़ेगा न ? ... मुनि-ऐसी हालत में तो तीर्थङ्करों को भी मौन ही रखनी थी, किन्तु उन्होंने उपदेश देकर अनेकानेक अधर्मियों के अत्याचार पर कटार-धाव किया था। , ___ मेष-किन्तु मैं पूछता हूँ कि यदि वेष-परिवर्तन न किया जावे, खो क्या कल्याण नहीं हो सकता है ?
मुनि-नहों।
मेघ--क्यों ? . .: मुनि-जब तक वेष रहेगा, तब तक साधारण तौर से सत्य नहीं कहा जा सकेगा। यदि सत्य कहा जावेगा, तो वही वैमनस्य
और निंदा से कर्मबन्ध का कारण होगा; अतः वेष त्याग कर डंके की चोट सत्य धर्म सुना कर कुमार्ग पर जाते हुए भद्रिकों का कल्याण क्यों नहीं किया जावे ?