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तेरह पंथियों के साथ चर्चा
गयवर०--आपकी प्रतीति नहीं है इसलिए मध्यस्थों कोपावश्यक्ता है।
तेरह०-ऐसा शास्त्रार्थ करना हमारे ज्यजी नहीं चाहते ! गयवर-तब आपको कहा किसने था ? तेरह--आप बकवाद करते हैं न । गयबर०-हमको आमन्त्रित करके तो आप ही लाये हैं। तेरह०-किसने भामन्त्रित किया था आपको ?
गयबर०-आपके पूज्यजी से पूछो कि टोला भागता है ऐसा कहने वाला कौन था ?
तेरह-आपतो साधु हैं, यदि किसी बेवकूफ ने कह दिया हो तो आपको इतना गुस्सा क्यों आया ?
गयवर०-हम साधु हैं, तब ही तो इस प्रकार धर्म का अपमान सहन नहीं कर सकते हैं।
तेरह. इसके लिये आप क्या चाहते हैं ? गयवर-कहने वाला माफी मांग लेवे ।
इस पर उनमें से एक आदमी उठकर बोला कि मैं माफी मांगता हूँ।
गयबर-आप ही कहने वाले हैं न १ तेरह: हाँ, हाँ ,मैंने ही कहा और मैं ही माझी माँगता हूँ।
मुनि श्री को तेरह पन्थियों के साथ यह दूसरी विजय थो उस दिन से तेरह पन्थी पूज्य ने अपने साधु श्रावकों से कह दिया कि श्रीलालजी के साधुओं के साथ कोई भी चर्चा नहीं करे। बस मेरे खयाल से उस दिन से आज पर्यन्त तेरह पन्थी
साधु श्रावक कहीं पर भी पूज्य श्रीनालजी के साधुओं से किसी प्रकार की चर्चा नहीं की। अस्तु,