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मेघराजजी से चर्चा
मेघ-तो क्या आप अकेले ही वेष का त्याग कर देवेंगे ? मुनि-मैं उनकी राह कब तक देखता रहूँ। मेघ-तो क्या आपने दृढ़ निश्चय कर लिया है ? मुनि-हां, निश्चय तो दृढ़ ही है, पर ऐसा संयोग "मिलेगा ब होगा। मेष-खैर, अभी तो आप ब्यावर पधारो। मुनि-क्षेत्र स्पर्शना।
मेघराजजी, कनकमलजी तो प्रातःकाल हो ब्यावर चले गये; तथा मोडीरामजी महाराज एवं हमारे चरित्रनायकजी तीन दिन पश्चात् ब्यावर पधारे । भावकों की इच्छा गयवरचन्दजी से व्याख्यान बंचवाने की थी, किन्तु मोड़ीरामजी महाराज ने आज्ञो न देकर स्वयं ही व्याख्यान दिया, और ४ दिन ठहर कर जोधपुर की ओर विहार कर दिया।
में व्हे. परन्तु भाखिर आप दोनों को उस वेष का त्याग कर गृहस्थधर्म की शरण लेनी.पड़ी। शोभालालजो ने जैन-तीर्थों की यात्रा की तथा ज्ञान का अभ्यास एवं प्रचार किया; परंतु जितना उपकार हमारे चरित्र नायक जी ने किया उतना वे नहीं कर सके। कारण आपने पहले से ही दीर्घ दृष्टि से काम किया था; स्थानकवासी मत एवं वेष का त्याग करके आपने सीधे ही संवेग पक्ष की दीक्षा ग्रहण कर ली, यही कारण है कि मापने सर्वत्र सत्य का डंका बजा दिया। स्थानकवासी साधुओं के साथ कई स्थानों पर शासार्थ हुए, परन्तु भार श्रद्धा और चारित्र भादि सब बातों में ही विजयी हुए। अतः श्रद्धा शुद्ध होने पर वेष-परिवर्तन करना हो.