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बीमारी का हो जाना
शरीर बादी से व्याप्त हो गया। पांचवें दिन जब वर्षा कुछ बंद हुई, तो नजदीक के घरों में असमय गोचरी गये, बहां मक्की की रोटी और दही मिला, अतः वही लाकर खा लिया । इन सब संयोगों के मिल जानेसे बादी की बीमारी हो गई । श्रावकों ने इलाज बहुत किया पर बीमारी जोर पकड़ती ही गई। तीन मास तक इतनी वेदना रही कि पत्थारी से बैठनाउठना होता तो दूसरा ही पकड़ कर बैठाता उठाता; किन्तु इस बीमारी में भी आप निरन्तर बड़े २ शास्त्रों का पठन-पाठन किया करते थे । आपने लगभग एक लाख श्लोक जितना पठन-पाठन उस बीमारी में कर लिया। शास्त्र देने वाले थे श्रीमान् चन्दनमलजी नागौरी तथा लाने और वापस पहुँचाने वाले थे फूलचंदजी अतः उस बीमारी की अवस्था में एक तो निवृत्ति थी, दूसरे ज्ञान पढ़ने की आपकी उत्कृष्ट अभिरुचि इतनी थी कि उस पठन-पाठन में आपको वह वेदना कुछ भी मालूम न हुई । वेदना होना तो अशुभ कर्मों का उदय था, परन्तु आपने इस प्रकार ज्ञानाभ्यास कर अनंत कर्मों की निर्जरा कर डाली और इससे उस वेदना को आपने शुभोदय ही समझा।
इधर जब जावद में आपके गुरुवर मोड़ीरामजी महाराज को मालूम हुआ कि सादड़ी में गयवरचंदजी बीमार हैं, अतः आप एक सुवालालजी नामक साधु को लेकर कार्तिक कृष्ण ४ को सादड़ी पधारे । कुछ दिन ठहरकर सुवालालजी को श्रापकी व्यावच्च के लिये वहीं रख दिया, और आप बापिस जाबद पधार गये । - मुनिश्री के व्याख्यान और प्ररूपना से सादड़ी के अगुवेश्रावकों को यह तो मालूम हो ही गया कि आपकी श्रद्धा मूर्तिपूजा