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गंगापुर में वार्तालाप
शोभालालजी ने पज्यजी महाराज का संदेश गयवरचन्दजी को सुनाते हुये कहा कि आप एकबार पूज्यजी के पास चले चलो । गयवर०—वहां जाने से क्या लाभ है ?
शोभा० - लाभ की तो कोई आशा नहीं है, पर पूज्यजी महाराज ने मुझे कहकर भेजा है कि तुम एक बार गयबरचन्दजी को मेरे पास ले आओ ।
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गथवर ० - महाराज आप अभी भोले हो, मैं पूज्यजी परन्तु महाराज को अच्छी तरह से जानता हूँ, वे पक्के मुत्सद्दी हैं, अपने पास बुलाकर वे मुझे किसी भी प्रकार से तंग करना चाहते हैं । कारण वहां अपने पक्ष का तो एक भी आदमी नहीं है । खैर, मैं आप से पूछता हूँ कि आपने अब क्या निश्चय किया है, और आपके साथ पूज्यजी महाराज का कैसा व्यवहार है ?
शोभा०- पूज्यजी महाराज से जब मैं मिला तो वे सख्त नाराज थे, उन्होंने कहा कि तुमने गयवरचन्दजो से क्या बातें की पर बाद में जब तुम्हारा गंगापुर जाना सुना तो मेरे पर खुश हो कर मुझे यहां मेजा है | मेरी राय से तुम एक बार पूज्यजी के पास चले चलो, तो कोई हर्ज की बात तो है नहीं ।
गयवर० - हर्ज नहीं, तो लाभ भी क्या है ? मेरा तो विचार है कि इस प्रपंची जाल से छूटना ही अच्छा है, क्योंकि इस वेष में -रहकर सत्यप्ररूपना तो कर ही नहीं सकेंगे। किसी न किसी प्रकार से उत्सूत्र का लाग-लपेट लगे बिना रह ही नहीं सकता है; श्रतः जब आत्म-कल्याण के लिए घर छोड़ा है, तो फिर दक्षिणता किस बात की है ।
शोभा०- यदि कर्मचन्दजी महाराज तैयार हो जावें तो मैं