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३०-जावरा में पूज्यजी महाराज का मिलाप,
हमारे चरित्र नायकजी रतलाम से विहार कर आस-पास के प्रामों में भ्रमण करते हुए जावरे आये । यहाँ किस्तूरचंदजी महाराज ६ ठाण से विराजते थे। आप जाकर किस्तूरचंदजी के शामिल ठहर गये । किस्तूरचंदजी महाराज दीक्षा में पूज्यजी से बढ़े थे, किन्तु एक शिष्य के कारण आपकी पूज्यजी से ना इत्तफाकी थी।
इधर पूज्यजी महाराज मन्दसौर होकर जावरा पधार रहे थे। जब मालूम हुआ कि पूज्यजी महाराज आज जावरा पधारने वाले हैं तो बहुत से लोग दूर २ तक सामने गये । हमारे चरित्रनायकजी भी साधुओं को साथ लेकर पूज्यजी महाराज के सामने गये। जब पूज्यजी महाराज के दर्शन हुए; तो उनका मिजाज बेहद गर्म था । जब हमारे चरित्रनायकजी ने वन्दन कर पैरों के हाथ लगाया, तो पूज्यजी की ओर से सत्कार करना तो दूर रहा, उन्होंने श्रापके हाथों को गुस्से के मारे दूर कर दिया। इस पर आप समझ गये कि पूज्यजी महाराज की सख्त नाराजी है । रास्ते में चलते हुए, आपने अपने गुरु-भाई ताराचंदजी को पूछा कि क्या मामला है । उन्होंने कहा कि रतलाम के समाचार आने से पूज्यजी महाराज आप पर विशेष नाराज हैं । आपने रतलाम में क्या किया था ? खैर, यहाँ तो सँभल कर रहना । गयवरचंदजी ने कहा कि ठीक है। पूज्यजी महाराज अपने १७ साधुओं के साथ जय धनि के नाद