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जावरा का सम्वाद
२११ इस समय तो तुमको माफी दी जाती है, परन्तु आइन्दा से तुम ऐसी प्ररूपना करोगे, तो शक्तउपालम्मा दिया जायगा, इस बात को ध्यान में रखना।
दूसरा तुमने रतलाम में सेठ साहब से वाद-विवाद क्यों कया था ?
गयवर-पूज्यजी महाराज, इसमें मैं किंचित् मात्र भी दोषी नहीं हूं, क्योंकि मैंने पहिले ही वादी-प्रतिवादी रूप बनकर सेठजी से ज्ञान-प्राप्ति के लिये ही वार्तालाप किया था। ___ज्यजी-किन्तु ऐसी चर्चा क्यों करनी चाहिए, जिसमें लोगों को अश्रद्धा उत्पन्न हो तथा उल्टी निन्दा करें।
गयवर-ठीक, आईन्दा से ध्यान रखूगा।
बाद किस्तूरचंदजी महाराज के मामले को निबटाकर आपस में सब साधुओं ने यथा क्रमः वन्दन-व्यवहार कर लिया। पूज्यनी महाराज इतने चतुर मुत्सद्दी थे,कि दाव को नीचा पड़ता देख कर कार्य को ज्यों त्यों निवटा लेते थे। ___इधर तो साधुओं का मामला निपटा कर पज्यजी नीचे पधारे थे, और उधर उदयपुर के कई श्रावक आगये। वे गयवर चन्दजी महाराज को पूज्यजी से उपालंभ दिलाने के लिये ही आये थे, अतएव उन्होंने आते ही पूछा कि क्या गयवरचन्दजी महाराज यहाँ ही हैं ?
गयवरचन्दजी ने कहा हाँ, मैं यहाँ ही हूँ, श्राप की राह ही देख रहा था। ___उदयपुर के श्रावक---गयवरचन्दजी महाराज आप जरा नीचे पज्यजी महाराज के पास पधारें।
गयवर- हाँ अभी आता हूँ।