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उदयपुर के श्रावक
बिहार कर गये । तब वे श्रावक पूज्यजी के पास आकर कहने लगे कि क्या गयवरचंदजी महाराज बिहार कर गये ?
पूज्यजी - हाँ, जरूरी कार्य था, इसलिए उनको बिहार करना पड़ा ।
श्रावक - हमतो उनके लिए ही आये थे, आपके सामने उनसे कुछ प्रश्न पूछ कर निर्णय करना था ।
पूज्यजः - क्या निर्णय करना है, हमसे करलो ? श्रावक - आप तो मालिक हैं, हमें तो उनसे ही निर्णय
करना था ।
पूज्यजी - वे नये साधु हैं, यदि कुछ कह भी दिया हो, तो उस बात की विशेष चर्चा न करना ही अच्छा है, मैंने उनको ठीक समझा दिया है ।
फिर तो था ही क्या वे श्रावकगण हताश होकर उदयपुर चले गये |
'गवरचंदजी उस दिन तो एक ग्राम में ठहरे, और दूसरे दिन बिहार किया, परन्तु स्वामी मगनजी धीमी चाल से चलते
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थे । अतः वे पीछे रह गये । हमारे चरित्रनायकजी ने सीधे ही नगरी का रास्ता लिया और जहाँ मार्ग पलटता था, वहाँ ऐसा संकेत कर दिया कि पीछे २ मगनजी स्वामी को भी उधर ही आना पड़ा। जब आप दोनों मिले तो मगनजी ने कहा कि नगरी जाने के लिए पूज्यजी ने मना किया था । गयवरचंदजी ने कहा कि यदि ऐसा ही था; तो आपने मुझे पहले क्यों नहीं कहा था तथा स्वयं पूज्यजी महाराज ने ही मुझे क्यों नहीं कह दिया ।
नगरी जाने के लिए मनाई करने का यह कारण था, कि