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आदर्श - ज्ञान
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से जावरा में प्रवेश किया । किस्तूरचंदजी महाराज जहाँ ठहरे हुए थे, वह मकान थोड़ा सा ही दूर था । फिर भी रास्ते में एक गृहस्थ का मकान को जाँच कर पूज्यजी अपने साधुओं के साथ अलग मकान में ठहर गये । आपका इरादा किस्तूरचंदजी और गयवरचंदजी के साथ उतरने का नहीं था
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जब पूज्यजी महाराज अलग स्थान पर ठहर गये, तव गयवरचंदजी ने अपने साधुओं को साथ लेकर वहाँ जाकर पूज्यजी को वन्दन किया; किन्तु पूज्यजी ने ध्यान ही नहीं दिया । बाद गयवरचंदजी ने प्रार्थना की कि क्या मैं अपना भँडोपकरण यहाँ ले आऊँ, इस पर भी पूज्यजी ने कुछ नहीं कहा । तब हमारे चरित्र - नायकजी ने सोचा कि पूज्यजी महाराज इस समय गुस्से में हैं, अतः आप ओर कुछ अर्ज करना ठीक न समझ कर अपने निवास स्थान किस्तूरचंदजी के पास आ गये और गोचरी, पानी लाकर दिन भर वहीं ठहर गये ।
करीब चार बजे पूज्यजी महाराज थंडिल भूमिका पधारे । वापिस लौटते हुए आप किस्तूरचंदजी के मकान पर आये, परन्तु वहाँ किसी भी साधु ने उठकर आपका सत्कार नहीं किया, कारण आपने भी किसी साधु का आदर नहीं किया था । पूज्यजी थोड़ी देर किस्तूरचंदजी से बात चीत करके अपने मकान पर चले गये । वहाँ जाकर आपने सोचा कि यह सब काम गयवरचंदजी का ही होगा कि जो मैं वहाँ गया और कोई साधु उठकर खड़ा भी न हुआ । शायद वह समुदाय में बखेड़ा तो न डालदे, क्योंकि दो साधु तो गयवरचंदजी के पास हैं और ६ किस्तूरचंदजी के पास हैं और दोनों के साथ प्रतिकूल मामला चल रहा है; अतएव कम