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________________ आदर्श - ज्ञान २०६ से जावरा में प्रवेश किया । किस्तूरचंदजी महाराज जहाँ ठहरे हुए थे, वह मकान थोड़ा सा ही दूर था । फिर भी रास्ते में एक गृहस्थ का मकान को जाँच कर पूज्यजी अपने साधुओं के साथ अलग मकान में ठहर गये । आपका इरादा किस्तूरचंदजी और गयवरचंदजी के साथ उतरने का नहीं था में जब पूज्यजी महाराज अलग स्थान पर ठहर गये, तव गयवरचंदजी ने अपने साधुओं को साथ लेकर वहाँ जाकर पूज्यजी को वन्दन किया; किन्तु पूज्यजी ने ध्यान ही नहीं दिया । बाद गयवरचंदजी ने प्रार्थना की कि क्या मैं अपना भँडोपकरण यहाँ ले आऊँ, इस पर भी पूज्यजी ने कुछ नहीं कहा । तब हमारे चरित्र - नायकजी ने सोचा कि पूज्यजी महाराज इस समय गुस्से में हैं, अतः आप ओर कुछ अर्ज करना ठीक न समझ कर अपने निवास स्थान किस्तूरचंदजी के पास आ गये और गोचरी, पानी लाकर दिन भर वहीं ठहर गये । करीब चार बजे पूज्यजी महाराज थंडिल भूमिका पधारे । वापिस लौटते हुए आप किस्तूरचंदजी के मकान पर आये, परन्तु वहाँ किसी भी साधु ने उठकर आपका सत्कार नहीं किया, कारण आपने भी किसी साधु का आदर नहीं किया था । पूज्यजी थोड़ी देर किस्तूरचंदजी से बात चीत करके अपने मकान पर चले गये । वहाँ जाकर आपने सोचा कि यह सब काम गयवरचंदजी का ही होगा कि जो मैं वहाँ गया और कोई साधु उठकर खड़ा भी न हुआ । शायद वह समुदाय में बखेड़ा तो न डालदे, क्योंकि दो साधु तो गयवरचंदजी के पास हैं और ६ किस्तूरचंदजी के पास हैं और दोनों के साथ प्रतिकूल मामला चल रहा है; अतएव कम
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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