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________________ २०७ जावरा का संवाद से कम गयवरचंदजी को तो मैं मेरे पास बुलालूं, फिर किस्तूरचंद जी से तो कुछ होने वाला भी नहीं है । किन्तु दिन थोड़ा ही शेष रह गया था; फिर भी एक श्रावक को गयवरचंदजी के पास भेजा और कहा कि जाओ, तुम गयवरचंदजी को बुला लायो । आदमी ने आकर गयवरचंदजी से कहा कि आपको पूज्यजी ने बुलाया है। इधर किस्तूरचंदजी की यह इच्छा नहीं थी कि गयवरचंदजी पज्य जी के पास जावें । गयवरचंदजी ने कहा कि मुझे जाने दो, ताकि कुछ मालूम तो हो, कि पज्यजी गहाराज क्या कहते हैं । किस्तूरचंदजी ने कहा कि कहीं ऐसा न हो, कि तुम जाकर पूज्यजी से मिल जाश्रो और हम यहाँ अलग ही बैठे रहे। गयवरचंदजी ने कहा कि आप खातिरी रखें, पहले आपका निपटारा होगा, बाद में हमारा । ___ गयवरचंदजी अकेले ही पूज्यजी महाराज के पास गये और नम्रता पूर्वक विनय कर के बोले कि मेरे लिए क्या आज्ञा है, मैं हाजिर हूँ। पूज्यजी खुश होकर बोले कि क्या मँडोपकार नहीं लाये हो ? गयवर-मैंने दो बार विनय की थी, पर आपकी शुभ दृष्टि नहीं देखी, इसलिए में भँडोपकरण नहीं लाया । पूज्यजी-जाओ, तुम तीनों साधू भँडोपकरण लेकर आ जाओ। गयवर-किस्तूरचंदजी महाराज के लिए क्या आज्ञा है ? पूज्यजी-उसको तो अभी वहीं रहने दो। गयवर-यदि मैं भी कल ही आऊँ तो क्या नुकसान है, क्योंकि अब दिन शेष थोड़ा सा ही रहा है।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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