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आदर्श-ज्ञान जीवों की हिन्सा करने वाला भी मोक्ष या स्वर्ग में जाता है, क्यों कि सम्यग्दृष्टि जीवों के परिणाम बुरे नहीं रहते हैं। और उनका भोग भी कर्म निर्जरा का ही कारण है राजा उदाई और वर्णनाग नतुआ का उदाहरण सत्रों में विद्यमान है। उन्होंने संग्राम में पंचे. न्द्रिय जीवों की हिंसा की फिर भी अपने सम्यग्दर्शन के कारण मोक्ष और स्वर्ग में गये हैं।
सेठजी-महाराज आपका कहनातो न्याय संगतहै,आपका युक्ति बहुत ही प्रबल है । मैं इस बात को मानता भी हूँ, किन्तु
आप मूर्तिपूजा की हिंसा को हिंसा नहीं मान कर धर्म मानते हो, यह बात मुझे खटकती है। यदि ऐसा ही हो जाय, तो आपने में तथा मत्ति-पूजकों में फरक ही क्या रह जाता है। ___ मुनिज -सेठजा ! फर्क केवल परिणाम का है। जो कार्य मन्दिर मार्गी करते हैं, रूपान्तर में वही काम स्थानकवासी करते हैं। विशेषता इतनी ही है कि अपने को मतपक्ष के कारण मायाकपट आदि प्रपंच अधिक करने पड़ते हैं। थोड़े ही समय पूर्व, स्थानकवासी समाज मूर्ति पूजकों के जिन कार्यों को आगे रखकर निन्दा करता था, वही कार्य आज वह स्वयं कर रहा है । उदा हरणार्थ लीजिये।
(१) मर्तिपूजक लोग व्याख्यान में, प्रभावना देते थे, तब अपने लोग उनकी निन्दा करते थे। आज हमारे व्याख्यानों में भी खुल्लमखुल्ला एकेन्द्रिय जीवों की प्रभावना होती है ( नलयेर )।
(२) मूर्ति पूजक लोग संघ लेकर यात्रार्थ जाते थे, हम उसकी भी निन्दा करते थे । आज हमारे दर्शनार्थ हजारों लोग आते जाते हैं और रेल्वे को पैसा देकर अधिक हिंसा के पात्र बनते हैं।