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आदर्श-ज्ञान
२०० मानने से ही दक्षिण की नरक तक जाने का इरादा कर लिया है । यदि मैं आनन्द कामदेव के लिए प्रश्न पूछू तो आप तो उनके लिये भी मंदबुद्धि और दक्षिण की नरक बता देंगे, क्योंकि वह लोग भी गृहस्थ थे और पृथ्व्यादि जीवों की हिंसा करते थे। सेठजो, श्राप अनुभवी हैं, इस बात को जरा सोचें, समझे, और विचार करें।
सेठजी-तो फिर सूत्र में ऐसा पाठ क्यों आया है ?
मुनिजी-सेठजी, यह पाठ सम्यग्दृष्टि एवं श्रावक के लिये नहीं है, पर मिथ्यादृष्टि, क्रूरकर्मी, निध्वंश परिणामी, अनार्य लोगों के लिये है। यदि आपकों देखना हो तो सूत्र मेरे पास मौजूद है, आप देख लो पढ़ लो और सुन लो ? '
सेठजी-कृपा कर आप ही पढ़ कर सुनादें। मुनिजी उठ कर पुट्ठा से प्रश्न व्याकरण सूत्र के पन्ने लाये और प्रथम अश्रवद्धार का पाठ निकाल सेठजी को सुनाने लगेः___"एबमाइ सते सतपरिवज्जाए उवहणंति दढ मूढ़ दारुणमति कोहा माणो माया लोभा हास अरति रति सोय वेदत्थी जीय कमत्था धम्महेऊ सवस अवासा अठाए अपठाए य तस्सपाणा थावरे य हिसं ति मंद बुद्धि सवीसा हणंति अवसा हणंति सवसा अवसा दुहाओ हणंति अठाएहणंति प्रणाहाण्य हणंति अठा अठा दुहारोहणंति हास्सराहणंति वेराहणति रतोहणंति हास्सा वेरा रतीहणंति कुद्धाहणंति लुद्धाहणंति मुद्धाहणंति कुद्धा लुद्धा मुद्धाइणंति प्रस्थाहणंति धम्माहणंति कामाहणंति अत्था धर्म