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२६-मूर्ति के विषय में दूसरे दिन का संवाद
___ दूसरे दिन कई लोग जो इस विषय में विशेष अनुरक्त थे तथा जिन्हें संवाद सुनना था, बारह बजे ही आगये । ठीक १ बजे सेठजी वगैरह श्रा पहुँचे । पहिले तो इधर-उधर की बातें हुई; बाद में इस प्रकार वार्तालाप होने लगाः
सेठजी-महाराज, जैन धर्म एक शुद्ध,पवित्र और दयामय धर्म था, जिसको मूर्तिपूजकों ने कैसा आडम्बरी और हिंसामय धर्म बना दिया; यदि स्थानकवासी समाज पैदा नहीं होता, तो न जाने वे लोग क्या कर डालते। __मुनिजी-सेठजी, यों तो मैं आपकी बात को स्वीकार कर लेता हूँ; किन्तु यदि मुझे वादी होकर बोलने की स्वतंत्रता मिल जाय तो मैं खूब हो खुले दिल से बोल सकूँगा।
सेठजी-जी महाराज ! आप निडर होकर वादो रूप से ही बोलें।
मुनिजो-आपने कहा कि 'यदि स्थानकवासी समाज पैदा नहीं होता तो क्या स्थानकवासी समाज नया पैदा हुआ है ? यदि नया पैदा हुआ है, तो इसकी उत्पत्ति कब, क्यों, और किससे हुई, यह मैं जानना चाहता हूँ, बाद में आपके प्रश्न का समुचित उत्तर दूंगा। ____ सेठजी-आप तो जबान निकली नहीं, कि उसको पकड़ना ही चाहते हैं।