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स्थानकवासी स० किसने चलाया - मुनिजी-किन्तु ऐसा किये बिना ठीक जानकरी भी तो नहीं होती है।
सेठजी-जब यतिगण शिथिल हो गये और मन्दिरों की धूमधाम अधिक बढ़ गई, तब उस हालत में लौंकाजी ने इस समुदाय को जन्म दिया था। इसका समय विक्रम की सोलहवीं शताब्दी, तथा स्थान गुजरात-अहमदाबाद है ।
मुनिजी-लौंकाशाह कौन था ? सेठजी-एक गृहस्थ था। मुनिजी-तब क्या हमारी समुदाय गृहस्थ की चलाई हुई है? सेठजी-हाँ, इसमें क्या हुआ ?
मुनिजी- खैर मैं इसको ही पूछना चाहता था । अब आपने आडम्बर और धूम धाम की बात कही, सेठजी यह तो जमाने की हवा है, और मेरे ख्याल से शायद ही कोई समुदाय इससे बचा हो । जब मैं गृहस्थावस्था मैं आपके यहाँ ठेहरा था और पूज्यजी महाराज का चतुर्मास था, तब हजारों लोग दर्शनार्थ आते थे । क्या वह आडम्बर नहीं था,और चतुर्मासही क्यों, पर जब पर्युषणों के अन्दर भट्टियें चलती थीं, तब कौन देखता था नीलन-फूलन और कौन देखता था लकड़ियों के अन्दर त्रस जीव । विधर्मी रसोइये जब दो-दो मन चावलों का अग्नि-तुल्य गर्म पानी जमीन पर डालते थे, तब उसमें त्रस और थावर जीवों का कितना स्वाह आडम्बर की ओट में होता था। आज भी पूज्यों के चतुर्मास में दश-दश और बीस-बीस हज़ार का खर्चा केवल आडम्बर के लिए ही होता है। क्या पूर्व समय में ऐसा हुआ आपने सुना