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भादर्श-ज्ञान
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नहीं सुना, और आज तुम्हारे कारण सुनना पड़ा है। और फिर भी, तुम कहते हो कि क्या नुक्सान किया। ___शोभा०-आपने हमारे कारण क्या उपालम्भ सुना है, कृपा कर बतलाईये तो सही ? ____ पूज्यजी-तुमने तीवरी के श्रावकों को मूर्ति के विषय में क्या कहा था, याद है न ?
शोभा-हाँ, मुझे बराबर याद है, पर इससे क्या अनर्थ हो गया ?"
पूज्यजी-जब क्या तुम्हारी श्रद्धा मूर्ति मानने की है ?
शोभा०-मूर्ति कौन नहीं मानता, क्या आप मूर्ति नहीं मानते हैं ?
पूज्यजी-हमारी श्रद्धा तुम्हारी तरह नहीं है ।
शोभा०-आपने मुझे शास्त्र बँचवाया था, तब आपने जिन प्रतिमा का जो अर्थ करके सममाया था, क्या मेरी श्रद्धा उससे भिन्न है। ____पूज्यजी-क्या मैंने तुमको यह कहा था कि तुम श्रावकों के सामने मूर्तिपूजा का पक्ष करना । ___ शोभा०-तो फिर सूत्रों में जिन प्रतिमा आती है, वहाँ क्या अर्थ करना, तथा आपने नागौर में क्या फरमाया था, तथा मोडीरामजी को आबू जाने की आज्ञा क्यों दो थी ! __पूज्यजी-इस समय मैं तुम्हारी एक भी बात सुनना नहीं चाहता, यदि तुमको इस समुदाय में रहना हो, तो इस कागज के नीचे अनंते सिद्धों की साख से हस्ताक्षर करदो ।