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पाली में शोभालालजी को धमकी
भी पहलू में मूर्ति का खंडन नहीं था, किन्तु स्थानकवासी समुदाय में रहकर मूर्ति पर श्रद्धा रखने वालों पर जोर से कटाक्ष किया था । आपने यहां तक कह दिया कि यदि हमारी समुदाय में भी किसी साधु क मूर्ति पूजा पर श्रद्धा हो तो वह अलग होकर पीले कपड़े - पहिन ले । मैं ऐसे पतितों को एक क्षण भर भी समुदाय में रखना उचित नहीं समझता हूँ ।
व्याख्यान समाप्त होने के बाद पूज्यजी ने एकान्त कमरे में जाकर सब से पहिले शोभालालजी को बुलवाया; क्योंकि मूर्तिपूजा की श्रद्धा वाले चारों साधुओं में श्राप ही डरपोक थे | आप शोभालालजी से कहने लगे कि तुम कितने ऊँचे खानदान के हो, तथा चढ़ती जवानी में किस प्रकार स्त्र कुटुम्ब आदि को छोड़कर वैराग्य से दीक्षा ली है, ज्ञानाभ्यास के लिए तो अखिल समुदाय में तुम्हारी बरोबरी करने वाला एक भी साधु नहीं है, किन्तु दुःख है कि तुम हमारा और हमारी समुदाय का नाम बदनाम कर रहे हैं | पर याद रखना मैं तुम्हारे लिए घर २ में सूचना करवा देउँगा । तब तुम मारे २ फिरोगे, कोई भी तुम को आदर की दृष्टि से नहीं देखेगा; अब भी समय है, तुम अपने आपको सँभाललो तो है ।
अच्छा
शोभा०- पूज्यजी महाराज, आज हमारे पर आपकी इतनी नाराजी क्यों है, मैंने आपका या समुदाय का क्या नुक्सान किया है ?
पूज्यजी - क्या नुक्सान किया ? क्या तुमको मालूम नहीं है कि मैंनें दीक्षा लेने के बाद श्रावकों से आज पर्यन्त उपालम्भ