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पाली में धोवण की चर्चा कर्म-वर्तमान में अपने जो धोवण श्राता है, वह प्रायः सब रस-चलित ही होता है।
पूज्यजी-इसका क्या प्रमाण है ? ____कर्म-यहाँ अपने श्रद्धा सम्पन्न श्रावकों में से एक हीराचंद जी डागा, दूसरे समीरमलजी बालिया, जो अपनो समुदाय के परम भक्त हैं, और जैसा धोवण अपने यहाँ लाते हैं, वही धोवण दस बजे ये लोग चख कर एक काष्ट की कुंडी ( पात्र ) में रखलें, फिर पाँच बजे उस धोवण को चख लें, यदि उक्त दोनों श्रावक कह दें कि इतने समय में धोवण का स्वाद नहीं बदला है, तो मैं धोवण पीने के लिए तैयार हूँ । दूसरे, पूज्यनी साहब आप स्वयं विचार कर सकते हैं कि जो धोवण अपने यहाँ आता है, उसमें फुवारा ( कीटाणु, त्रसजीव ) हमेशा दिखाई देते हैं और उसको तालाब कुंए पर जाकर परड़ डालते हैं, तो ऐसे जीव-युक्त धोबण को लेकर पीने की किसी भी तीर्थङ्कर या गणधर ने आज्ञा नहीं दी है । मैं लकीर का फकीर नहीं हूँ, पर सत्य-ग्राही हूँ।
पूज्यजी-तब तो सब साधुओं को गर्म पानी ही पीना चाहिए, पर आपने यह भी विचार किया है कि क्या इतना गर्म पानी सरलता से निर्दोष मिल सकेगा ?
कर्म-पूज्यजी साहिब मन से चोरी छिपी नहीं है, केवली से भाव छिपे नहीं हैं। गर्म पानी निर्दोष नहीं मिले, तो क्या धोषण निर्दोष मिल सकता है ? जिन गांवों में ५-७ साधु जा निकलते हैं, वहाँ क्या धोवण तैयार मिलता है, या साधुओं के लिए धोवण घर-घर में बनाकर रखते हैं ?
पूज्यजी-यदि अपने लोग भी गर्म पानी पीना शुरू कर