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आदर्श-ज्ञान
१८६ सेठ-नियुक्ति में बहुत से स्थानों पर मूर्ति पूजा का विस्तार से वर्णन आता है, इसलिये नियुक्ति नहीं मानी जाती ।
मुनि०-अच्छा भद्रबाहु के हजारों वर्ष पूर्व सती द्रौपदी हुई है, और ज्ञात सूत्र में सती द्रौपदी के अधिकार में जिनघर और जिन प्रतिमा का उल्लेख पाता है । अत: नियुक्ति ही क्यों, ३२ सूत्रों के मूल पाठ में द्रोपदी के अधिकार में मन्दिर-मूर्ति का उल्लेख है। वह भी तो मन्दिर अशाश्वता ही था । क्यों सेठ साहब इस बात को तो आप मानते हो न ? ___सेठ०-द्रोपदी के अधिकार में जिनघर तथा जिनप्रतिमा का पाठ तो आता है, किन्तु उस समय द्रोपदी मिथ्यात्व अवस्था में थी, क्योंकि उसने पूव भव में नियाण किया था। ____ मुनि०-द्रोपदी को चाहे उस समय समकित हो अथवा मिथ्यात्व, मैं इस बात का निर्णय करना नहीं चाहता, किन्तु द्रोपदी के समय जैन-मन्दिर और मूर्ति तो विद्यमान थे न ? ____ सेठ०–हाँ, द्रोपदी के समय में जिन-मन्दिर और जिनप्रतिमा थी, तो इससे क्या हुआ । यों तो जम्बुद्वीप पन्नति सूत्र में ऋषभदेव और उनके गणधर एवं साधुओं के दाह स्थान पर भी इन्द्र महाराज ने रत्नों के चैत्य बनवाये थे, इससे मन्दिर, मूर्ति, धार्मिक पक्ष में थोड़े ही समझे जाते हैं । ____ मुनि०-यहाँ धर्म-अधर्म का प्रश्न नहीं परन्तु प्रश्न मूर्ति का है। जब आप स्वयं ऋषभदेव के समय से चैत्य होना स्वीकार करते हो, तो आप का प्रश्न आप के कथन से ही हल हो जाता है, कि जैन-मन्दिरों की प्रारम्भता भगवान् ऋषभदेव के समय से ही हो गई थी।