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उदयपुर में मूर्तिपूजा की चर्चा सना करना ही पहिले या पीछे हित, सुख, कल्याण और मोक्ष का कारण था यही अनुगामी क्रिया है। . जब यह मूल सूत्र पाठ और उसका अर्थ सुनाया तो परिषदा एकदम चौंक उठी, क्योंकि यह शब्द स्थानकवासी समाज ने पहिले पहल ही सुने थे । अतः कई लोग बोल उठे कि क्या मूर्ति पूजा करना मोक्ष का कारण हो सकता है ? और यदि ऐसा ही है तो फिर तप, संयम की क्या जरूरत है, साधु लोग इतना कष्ट न उठाकर मूर्ति पूजा ही क्यों नहीं किया करते. इत्यादि । व्याख्यान में बहुत गुलशौर होने लगा, जिसको मुनिश्री मूर्तिवत होकर सुनते रहे। किन्तु बड़े २ समझदार आदमी जो आपके पाटे के पास बैठे हुए थे, जैसे सेठजी नँदलालजी कोठारीजी, बलवंतसिंहजी, लालाजी केसरीलालजी वगैरहः ने अभी तक एक शब्द का भी उच्चारण नहीं किया था। जब मतग्रही लोग कुछ शान्त हुए तो कोठारीजी बलवंतसिंहजी ने, (जिनके पूर्वज मूर्तिपूजक थे) कहा कि महागज यह क्या बात है, हमने पूज्यजी महाराज की बहुत सेवा की, पर उन्होंने यह बात न तो कभी व्याख्यान में कही और न कभी वार्तालाप के समय खानगी में ही कहो कि मूर्ति पूजा मोक्ष का कारण है; इतना हो क्यों, यहाँ पर बड़े २ विद्वान मुनियों का पधारना हुआ है, और उन्होंने चतुर्मास कर सूत्र भो बांचे हैं, किन्तु मैंने तो क्या, किसी भी श्रावक ने यह शब्द नहीं सुना; फिर एक आप ही मूर्ति पूजा को मोक्ष का कारण बतलाते हो इसका क्या कारण है ? __ मुनि श्री ने उत्तरदिया कि कोठारीजी साहब, जो यह सूत्र मेरे हाथ में है, वह न तो मैंने लिखा है और न मेरे बाप दादात्रों