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सं० १९६५ का चातुर्मास बीकानेर में और श्रीराजप्रश्नीजीसूत्र की वाचना ली और कई थोकड़े भी कण्ठस्थ किये। ___ आपके दर्शनार्थ बीसलपुर से गणेशमलजी हस्तीमलजी तथा राजकुंवर बाई वगैरह आये थे आपका व्याख्यान सुनकर उनका विरह रूपी दुःख दूर होगया और कहने लगे कि आप धन्य हो जो कि इस घोर दुःखों की खान रूपी संसार को छोड़ कर निकल गये । हम मन्द भाग्य लोग अन्तराय कर्म के उदय से अभी संसार में ही दुःख पा रहे हैं। करीब एक मास तक सेवा कर के वे आप अपने ग्राम को चले गये । ___बीकानेर का चतुर्मास समाप्त होने के पश्चात् आप नागौर पधारे । नागौर में गंगारामजी कनकमलजी छः साधुओं के साथ ठहरे हुए थे और ११ साधुओं सहित पूज्यनी वहाँ पधारे, एवं पूज्यजी के १७ साधु नागौर में एकतित्र होगये । ____ बाहर के ग्रामों से कई श्रावक दर्शनार्थ आये थे जिनमें रतलाभ वाले अमरचन्दजी पीतलिया, रूपचन्दजी अग्रवाले तथा इन्द्रमलजी कावड़िया वगैरह भी थे। ___ रात्रि के समय प्रतिक्रमण के पश्चाचात् सब साधु मंडली बैठी हुई थी। इतने में अमरचन्दजी साहब वगैरह आये । अमरचन्दजी की बातें सुनने की सबको इच्छा रहा करती थी क्यों कि आपकी उत्पातिक बुद्धि अच्छी थी और पूज्यजी महाराज भी आपका सत्कार किया करते थे।
पूज्यजी०-क्यों सेठजी आप शबँजय गये थे ? सेठजी-जी महाराज, गया था । पूज्यजी-लोग शत्रुजय की बहुत प्रशंसा करते हैं ?