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आदर्श-ज्ञान
, १३० . सेठजी-जब सूत्र में इस बात का जिक्र ही नहीं है तो
आपने मान कैसे ली ? .. मुनिजी-वाचना देने वाला कहे वह बात माननी तो . पड़ती है। ____ सेठजी-आप सुत्र के पन्नों को उलट कर फिर दुबारा पढ़ें कि सत' द्रौपदी ने जिस जिनप्रतिमा की पूजा की है, उस समय किन पदार्थों की योजना की है । जैसे नमुत्थुणं श्रान्हिान्तणं तन्नाणं तारियाणं बुद्धाणं वोहियाणं मुताणमोयागाणं-इत्यादि पाठ से द्रौपदी ने तीर्थङ्कर देव की प्रतिमा पूज कर मोक्ष की ही प्रार्थना की है। यदि उस जिनप्रतिमा को कोई अज्ञ लोग कामदेव की प्रतिमा बतलादे, तो क्या नमुत्थुणं के गुण कामदेव में हैं, या कामदेव के पास कोई भी मोक्ष की प्रार्थना कर सकता है; क्या कामदेव मोक्ष का दातार भी सम्झा जा सकता है। अतः महाराज आप आत्मार्थी हैं, आपको ऐसा अर्थ का अनर्थ कभी नहीं करना चाहिए।
मुनिजी-तो क्या जिनप्रतिमा को हम तीर्थकरों की प्रतिमा कहें ? .. सेठजी-कहें क्या; वह प्रतिमा तीर्थङ्करों की ही है। मैंने पूज्य वनचन्दजी, पूज्य श्रीलालजी, स्वामी चनणमलजी महाराज
आदि कई विद्वान मुनिवरों से अच्छी तरह से निर्णय करलिया हैं, और उन्होंने स्पष्ट कहा था कि द्रौपती ने जिस प्रतिमा की पूजा कर नमुत्थुणं दिया, वह प्रतिमा तीर्थङ्करों की थी। यदि उसको कोई मत्त कदापही कामदेव की प्रतिमा कहे, तो उसको उत्सूत्र प्ररूपक कहना चाहिये ।