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वाली नगर में भिक्षा
रामजी महाराज कुछ कहने लगे, तो हमारे चरित्रनायकजी ने कहा कि गुरू महाराज यदि इनकी भावना है तथा निर्वद्य आहार पानी हो तो इनको तारना ही चाहिए । बस चार साधु गये, और उस संघ से आठ साधुओं के लिए श्राहार व गरम पानी ले आये। वापिस जाकर विचार किया कि देखो उदारता तो मन्दिर-मार्गियों की है; यदि इसी प्रकार मन्दिर-मार्गी साधु आगये हों तथा अपने श्रावक हो, तो इतनी उदारता उनमें नहीं है कि जिस प्रकार संघपति ने श्रद्धा पूर्वक अपना सत्कार किया है इसी प्रकार वे कर सकें, अस्तु ।
दूसरे दिन वाली से बिहार कर शिवगंज जा रहे थे; रास्ते में सुना कि पूज्यजी ने शिवगंज से पाली की ओर बिहार कर दिया है । बस, मोडीरामजी तथा हमारे चरित्रनायकजी इत्यादि सब साधुओं ने पाली का मार्ग पकड़ लिया । पूज्यजी महाराज के पालो पहुँचने के दूसरे दिन आप भी पाली पहुँच गये । इधर कर्मचंदजी, शोभालालजी, कनकमलजी वगैरह भी पूज्यजी के दर्शनार्थ सब पाली आ पहुँचे । उस समय पाली में ३७ साधु पूज्यजी महाराज के साथ बिराजते थे। जोधपुर, वींवरी, फलोदी, बीकानेर, अजमेर, उदयपुर, रतलाम, ब्यावर, सोजत वगैरह के बहुत से लोग दर्शनार्थ आये थे । नन्दकुवरजी और रंगूजी की आरजियें भी काफी तादाद में वहां उपस्थित थीं । यदि यह कह दिया जाय कि इस समय पाली में चातुर्विध संघ का एक खासा सम्मेलन हो गया था, तो भी अतिशयोक्ति न होगी।
पूज्यजी महाराज के समुदाय में स्वामी कर्मचंदजी, कनकमलजी, शोभालालजी और गयवरचंदजी ये चार साधु स्तम्भ